दोस्तों इस देश में हम जानेंगे कि book value kya hota hai, बुक वैल्यू कैसे निकालते हैं, बुक वैल्यू इतना इंपॉर्टेंट क्यों है, और इस बुक वैल्यू के कैसे चेक करें।
शेयर बाजार में पीबी रेशों निकलते समय और कंपनी की रियल वैल्यू समझने के लिए बुक वैल्यू की जरूरत पड़ती है।
अगर आपने यह लेख पूरी तरह अच्छे से पढ़ लिया तो मैं आपसे वादा करता हूं कि, आपको Book Value Meaning in hindi यह सर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
Book Value Meaning in hindi
दोस्तों आसान भाषा में बुक वैल्यू का मतलब यह होता है कि, अगर किसी कंपनी का कारोबार आज के दिन बंद हो जाए, और कंपनी अपने संपत्तियों से सारी देनदारियों को और सारे लोन को चुका दे तो उसे कंपनियों के पास जो संपत्ति बचती है उसे बुक वैल्यू कहा जाता है।
दोस्तों बुक वैल्यू और पर शेयर बुक वैल्यू में बहुत ही छोटा सा अंतर है।
1) बुक वैल्यू – कंपनी की वर्तमान कुल संपत्तियों से इसकी कुल देनदारी को घटने पर आने वाली कीमत को बुक वैल्यू कहा जाता है।
जब कंपनी के टोटल एसेट्स में से टोटल लायबिलिटी घटाई जाती है तब जो नेट एसेट्स मिलते हैं, उसे कंपनी की शुद्ध संपत्ति माना जाता है। उस शुद्ध संपत्ति को ही बुक वैल्यू कहा जाता है।
2) Per Share Book value – जब कंपनी की बुक वैल्यू को टोटल नंबर ऑफ शेर से डिवाइड किया जाता है तब जो उत्तर आता है उसे पर शेयर बुक वैल्यू कहा जाता है।
बुक वैल्यू कैसे निकालते हैं
दोस्तों book value kya hota hai यह जानने के बाद हमें बुक वैल्यू को कैसे निकालते हैं, यह जानना आसान होता है।
Book value formula
दोस्तों बुक वैल्यू का फार्मूला आसान है।
Book Value = Total Assets – Total Liabilities
बुक वैल्यू = कंपनी की कुल संपत्ति – कंपनी के कुल देनदारिया
जब कभी अपने कंपनी का बैलेंस शीट देखा होगा तो आपने नोटिस किया होगा कि कंपनी के सभी चीजों को दो भागों में बांटा जाता है।
1) Assets – असेट्स में वह सभी चीज आती है जिन्हें कंपनी own करती है, और कभी जरूरत पड़े तो उन्हें कैश में बदल सकती है।
2) Liability – लायबिलिटी में वह सभी चीज आती है जो कंपनी में उधार लेकर रखी है। जिसे भविष्य में कंपनी को वापस लौटना होता है।
बुक वैल्यू को शेयर होल्डर इक्विटी, नेट वर्थ , ऑनर्स इक्विटी, स्टॉक होल्डर इक्विटी, इस तरह कई नाम से जाना जाता है।
उदाहरण (Book Value Example)
मान लीजिए की राम नाम का एक व्यक्ति है। राम ने एबीसी लिमिटेड कंपनी शुरू की है।
राम के कंपनी के पास कुल संपत्ति इतनी है-
1) कंपनी की मशीनरी 25 लाख रुपए
2) गाड़ी 10 लाख रुपए
3) उसके बैंक अकाउंट में 2 लाख है।
4) उसने 13 लाख रुपए की इन्वेस्टमेंट की है।
5) उसके पास कुछ इलेक्ट्रॉनिक चीज है जिसकी कीमत 5 लाख रुपए है।
ऊपर दी गई पांच चीजों के बेचकर कैश में बदला जा सकता है। इसलिए यह सभी चीज उसकी एसेट्स कहलाते हैं।
राम के पास टोटल असेट्स 55 लाख रुपए है।
उस कंपनी पर नीचे दी गई कितनी लायबिलिटी है –
1) 10 लाख रुपए का लोन लिया है।
2) गाड़ी का लोन 2 लाख है।
3) क्रेडिट कार्ड पर 1 लाख का लोन है।
इस तरह राम की एबीसी लिमिटेड कंपनी टोटल लायबिलिटी कूल 13 लख रुपए है।
यह 13 लाख रुपए इसी भविष्य में चुकाने हैं।
अब अगर हम राम के एबीसी लिमिटेड कंपनी की बुक वैल्यू निकलते हैं, तो
Book Value = Total Assets – Total Liabilities
Book Value = 55 लाख – 13 लाख
Book Value = 42 लाख
इस तरह हम कह सकते हैं कि राम के एबीसी लिमिटेड कंपनी की टोटल बुक वैल्यू 42 लाख रुपए है। इसे राम की टोटल नेटवर्थ भी कहा जा सकता है।
दोस्तों बुक वैल्यू को निकालने की कोई खास जरूरत नहीं होती, क्योंकि लगभग सभी कंपनियां अपनी बुक वैल्यू बैलेंस शीट में प्रोवाइड करते हैं।
दोस्तों अपने नोटिस किया होगा कि अगर हम किसी वेबसाइट किसी कंपनी को एनालाइज करते वक्त वेबसाइट पर पर कंपनी के बुक वैल्यू चेक करते हैं तब वह गाली 20, 50, 100 औरों से भी ज्यादा होते हैं, या फिर कभी-कभी उससे भी कम होती है। यह बुक वैल्यू पर शेयर बुक वैल्यू होती है।
दोस्तों पर शेयर बुक वालों का फार्मूला भी आसान है और इसे इस्तेमाल करना जी बहुत ही आसान है।
Per Share Book Value = Book Value/ Total No. Of Shares
दोस्तों ऊपर दिए हुए उदाहरण में मान लीजिए की कंपनी के टोटल शेयर 1000 है।
तो उस कंपनी की,
Per Share Book Value = 42/1000
Per Share Book Value = 0.042
इसे परसेंटेज में निकल जाए तो,
Per Share Book Value = 4.2% होती है।
बुक वैल्यू का महत्व
1) बुक वैल्यू का उपयोग पीबी ratio निकालने के लिए किया जाता है।
PB Ratio = करंट शेयर प्राइस / बुक वैल्यू
2) अगर कंपनी के शेयर का प्राइस उसके पर शेयर बुक वैल्यू से नीचे चला जाता है, कंपनी को अंडर वैल्यू कंपनी माना जाता है।
3) इस तरह की अंडर वैल्यू कंपनी में निवेश करना अच्छा माना जाता है।
4) यह अंडर वैल्यू कंपनियां लॉन्ग करने अच्छा इन्वेस्टमेंट साबित हो सकती है।
5) बुक वैल्यू हमें कंपनी के असेट्स और लायबिलिटी की वैल्यू कंपनी के बैलेंस शीट के अनुसार बताता है।
6) जब तक कंपनी के बैलेंस शीट में असेट्स और लायबिलिटी की वैल्यू सही लिखी है, तब तक हम बुक वैल्यू को सही मान सकते हैं।
7) लेकिन कभी-कभी यह असेट्स और लायबिलिटी की वैल्यू बैलेंस शीट से अलग हो सकती है। इस कंडीशन में हमें बैलेंस शीट का अच्छे से एनालिसिस करना चाहिए।
8) जब कंपनी होती मैसेज और लायबिलिटी बैलेंस शीट में ठीक से नहीं दी जाती, तब कंपनी की बैलेंस शीट को एनालाइज करके आपको खुद बुक वैल्यू को कैलकुलेट करना चाहिए।
बुक वैल्यू कितनी होनी चाहिए
कभी भी अंडर वैल्यू स्टॉक देखकर सीधे इन्वेस्टमेंट नहीं करनी चाहिए। सबसे पहले कंपनी के बैलेंस शीट को अच्छे से एनालिसिस करने के बाद एसेट्स और लायबिलिटी को देखने के बाद ही इन्वेस्ट करना चाहिए।
किसी भी कंपनी में निवेश करते समय कंपनी का बुक वैल्यू कितना होना चाहिए, यह उसे कंपनी के कुल संपत्ति और लायबिलिटी पर निर्धारित करता है।
Difference Between Book value and Face value
Book Value | Face value | |
---|---|---|
1 | जब किसी भी कंपनी की कुल संपत्तियों में से उसे कंपनी की लायबिलिटी को हटाया जाता है, तब बाकी बचने वाले संपत्ति को बुक वैल्यू कहा जाता है। | जब कंपनी अपना आईपीओ लाती है, तब प्रमोटर और फाउंडर शेयर की प्राइस निर्धारित करते हैं, उसे प्राइस को फेस वैल्यू कहा जाता है। |
2 | कंपनी की बुक वैल्यू इस फॉर्मूलेशन निकाली जाती है, बुक वैल्यू = कुल संपत्ति – कंपनी कुल देनदारी |
फेस वैल्यू निकलने के लिए कोई फार्मूला नहीं होता है। |
3 | कंपनी की बुक वैल्यू कंपनी की कुल संपत्ति और लायबिलिटी पर निर्धारित होती है। | कंपनी की फेस वैल्यू कंपनी के फाउंडर तथा प्रमोटर निर्धारित करते हैं। |
4 | कंपनी की बुक वैल्यू का उपयोग PB रेशों निकालने के लिए किया जाता है। | फेस वैल्यू का उपयोग निवेशकों को डिविडेंड देने के लिए किया जाता है। |
5 | बुक वैल्यू कंपनी के असेट्स और लायबिलिटी काम ज्यादा होने पर बदलती रहती है। | फेस वैल्यू को सिर्फ फाउंडर और प्रमोटर बदल सकते हैं। |
Difference between book value and market value
Book Value | Market Value | |
---|---|---|
1 | बुक वैल्यू एक ऐसी वैल्यू है जिससे कंपनी एक्चुअल संपत्ति कितनी है यह मालूम होता है। | मार्केट वैल्यू से यह मालूम होता है कि कंपनी का स्टॉक शेयर बाजार में किस प्राइस पर ट्रेड कर रहा है । |
2 | बुक वैल्यू कंपनी के संपत्ति और लायबिलिटी से निर्धारित होती है। | मार्केट वैल्यू डिमांड और सप्लाई पर निर्धारित होती हैं। |
3 | बुक वैल्यू का उपयोग कंपनी का PB ratio निकलते समय होता है। | मार्केट वैल्यू का उपयोग ट्रेडिंग करते समय होता है। |
4 | जब कंपनी के संपत्ति और लायबिलिटी में बदलाव होता है तब बुक वैल्यू बदलती है। | लेकिन मार्केट वैल्यू डिमांड और सप्लाई के कारण हमेशा बदलते रहते हैं। |
FAQ
1) बुक वैल्यू का मतलब क्या होता है?
आसान भाषा में बुक वैल्यू का मतलब होता है कि, जब किसी कंपनी के कुल संपत्ति में से उसे कंपनी की लायबिलिटी घटाई जाए, तब बचने वाली संपत्ति बुक वाली होती है।
2) फेस वैल्यू और बुक वैल्यू क्या है?
फेस वैल्यू एक ऐसी वैल्यू है जिसे कंपनी के प्रमोटर और फाउंडर IPO लाते समय निर्धारित करते हैं। बुक वैल्यू ऐसी वाली है जो कंपनी के कुल संपत्तियों में से लायबिलिटी को घटाने के बाद बचती है।
3) बुक वैल्यू का क्या फायदा है?
बुक वैल्यू से हमें कंपनी की एक्चुअल संपत्ति कितनी है यह समझने में आसानी होती है। कंपनी के ऊपर होने वाले लायबिलिटी का हमें अंदाजा आता है।
4) बुक वैल्यू प्रति शेयर से क्या मतलब है?
जब कंपनी के बुक वैल्यू को टोटल शेयर्स से विभाजित किया जाता है, तब आने वाले उत्तर को बुक वैल्यू प्रति शेयर कहा जाता है।
5) शेयर मार्केट में बुक वैल्यू क्या है?
शेयर मार्केट में बुक वैल्यू एक एसी वैल्यू है, जो हमें कंपनी के कुल संपत्ति से लायबिलिटी घटाने के बाद बचाने वाली संपत्ति को दर्शाती है।
Conclusion
दोस्तों हमने ऊपर इस लेख Book Value kya hota hai यह विस्तार से जानने की कोशिश की है। किसी भी कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करते समय और निवेश करने से पहले बुक वैल्यू को जान लेना कितना महत्वपूर्ण है यह हमने ऊपर बताया है। बुक वैल्यू के साथ-साथ हमने, बुक वैल्यू और फेस वैल्यू में क्या अंतर है, बुक वैल्यू और मार्केट वैल्यू में क्या अंतर है। आदि विस्तार से बताने की कोशिश की है।
अगर ऊपर दिया हुआ लेख आपने समझ लिया तो आपको फंडामेंटल एनालिसिस करते समय “Book Value Meaning in hindi” यह फिर से सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि हमने बुक वैल्यू के रिलेटेड सभी संकल्पनाओं को की एक्सप्लेन करने की कोशिश की है।
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